Friday 21 June 2013

Traditional Water Pipe


Ó SATYENDRA SINGH
'Traditional Water Pipe' (sketch pen on paper)
Size - 11" x 15"


Sketch pen with Ink
हमारे उत्तराखंड के ग्रामीण पहाड़ी इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में एक बड़ा बदलाव आया है। जहाँ 15 से 20 वर्ष पहले गाँव के बुजुर्ग बांस से बने इस तरह के परम्परागत चिलम (स्थानीय भाषा में 'थ्वल्या') का उपयोग तम्बाकू पीने के  लिए करते थे। यह चिलम दादा जी के साथ हर समय रहता था, चाहे वे कहीं काम कर रहे हों या फिर खेत में हल जोतने गए हों। इसे वह खुद ही बांस को दो गांठ तक काटकर बनाते थे। तम्बाकू दो तरह का पिया जाता था। एक तो देसी, जो बाजार से खरीदा जाता था और दूसरा घरेलु तम्बाकू जिसे घर के खेत में उगाया एवं बनाया जाता था। इस समय गाँव के हर घर में चिलम-सजीला जरूर होता था और अतिथियों के घर आने पर भी सबसे पहले इसी की खोज होती थी, फिर चाय-पानी के लिए पूछा जाता था। इसी के साथ होती थी इधर-उधर की बातें और एक-दूसरे की सेवा पूछी जाती थी और बीच-बीच में एक-दो 27 नम्बर की बीड़ी भी पी जाती थी।
वहीं अब वक्त बदल गया है। अब कोई ही एक-दो बुजुर्ग गांवों में बचे होंगे। उनके बच्चे उनके लिए ये सब ब्यवस्था करते भी होंगे या नहीं भी। अब सिगरेट चलती है, वो भी नए-नए ब्रांड की, नहीं मिली तो बीड़ी से भी काम चल जाता है। शराब की तो पूछो मत ---- इसके बिना तो अच्छा से अच्छा खाना भी खासकर पुरुषों को तो हजम ही नहीं होता और उन्हें दो दिन खाना ना भी मिले तो वो खुश हैं अगर थोड़ी सी ये मिल जाये। 



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